BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली, नोएडा में आवारा कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों पर खाना खिलाने से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि अगर उन्हें कुत्तों की इतनी ही चिंता है, तो वे इन्हें अपने घर में क्यों नहीं खिलाते।
पीठ ने कहा कि क्या हर गली और सड़क को ऐसे “दयालु लोगों” के लिए खुला छोड़ देना चाहिए? कोर्ट का सवाल था, “क्या इंसानों की कोई जगह नहीं बची है? अगर आप कुत्तों से प्यार करते हैं, तो घर में एक शेल्टर बना लीजिए और वहीं खाना दीजिए।”
याचिकाकर्ता की दलील और कोर्ट की प्रतिक्रिया
याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी दलील में कहा कि वे एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स 2023 के नियम 20 का पालन कर रहे हैं, जिसके तहत स्थानीय निवासियों और सोसायटी समितियों को आवारा जानवरों के भोजन की व्यवस्था करनी होती है। उन्होंने बताया कि ग्रेटर नोएडा में तो इस दिशा में पहल हो रही है, लेकिन नोएडा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि क्या याचिकाकर्ता सुबह टहलते हैं या साइकिल चलाते हैं? और फिर टिप्पणी की – “सुबह टहलने वाले और दोपहिया वाहन चालकों को आवारा कुत्तों से गंभीर खतरा है। पहले खुद एक बार अनुभव करके देखिए।”
याचिका को जोड़ा गया अन्य मामले से
कोर्ट ने इस मामले को आवारा कुत्तों से जुड़ी एक अन्य लंबित याचिका के साथ जोड़ते हुए फिलहाल सुनवाई टाल दी है। इससे पहले मार्च 2025 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इस विषय पर विचार किया था।
हाई कोर्ट की भी स्पष्ट चेतावनी
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जहां एक ओर आवारा कुत्तों की सुरक्षा जरूरी है, वहीं आम नागरिकों की सुरक्षा भी उतनी ही अहम है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि हाल के दिनों में कुत्तों के हमले की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें जान-माल का नुकसान हुआ है।
हाई कोर्ट ने प्रशासन को निर्देश दिया था कि वे एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स और प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960 के तहत कार्रवाई करें, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर आमजन की आवाजाही पर कोई खतरा न बने।
निष्कर्ष
इस मामले ने एक बार फिर आवारा कुत्तों की देखभाल और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन की जरूरत को उजागर किया है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी यह दर्शाती है कि भावनात्मक रूप से प्रेरित कार्यों के पीछे सामाजिक जिम्मेदारी और कानूनी दायित्व को नहीं भुलाया जा सकता। आने वाली सुनवाई में इस मुद्दे पर देशव्यापी दिशा-निर्देश भी तय हो सकते हैं।