नितेश तिवारी की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘रामायण’ का टीज़र हाल ही में जारी हुआ है, जिसे दर्शकों और फिल्मी सितारों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। लेकिन इस टीज़र पर प्रतिक्रिया देने वाले एक खास शख्स हैं—रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर, जिन्होंने अपने पिता की ऐतिहासिक टीवी रामायण से भारतीय दर्शकों के दिलों में विशेष जगह बनाई थी।
प्रेम सागर ने स्पष्ट कहा है कि फिल्म को लेकर जल्दबाज़ी में कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए, लेकिन एक बात तय है—‘आदिपुरुष’ जैसी रचनात्मक भूल दोहराई नहीं जानी चाहिए।
‘हर किसी की अपनी रामायण होती है’
प्रेम सागर ने मीडिया से बात करते हुए कहा:
“हर इंसान की अपनी रामायण होती है। अगर कोई निर्देशक अपनी सोच से इसे बना रहा है, तो पहले हमें उसे देखने और समझने की ज़रूरत है, न कि तुरंत आलोचना करने की।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि राम के किरदार को आज के दौर में VFX और आधुनिक तकनीक के माध्यम से प्रस्तुत करना कोई गलत बात नहीं है, क्योंकि नया दर्शक वर्ग इन्हीं तरीकों से बेहतर कनेक्ट करता है।
VFX ठीक, पर धार्मिक किरदारों के साथ सम्मान जरूरी
हालांकि, प्रेम सागर ने क्रिएटिव फ्रीडम पर भी संतुलित राय दी। उन्होंने साफ कहा:
- “क्रिएटिव लिबर्टी का मतलब यह नहीं है कि धार्मिक किरदारों को गलत रूप में पेश किया जाए।”
- ‘आदिपुरुष’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि फिल्म में रावण जैसे विद्वान और धार्मिक व्यक्ति को गलत तरीके से चित्रित किया गया था।
- रावण को राम द्वारा यज्ञ कराने के लिए बुलाया गया था, और इस ऐतिहासिक तथ्य की अनदेखी दर्शकों को पसंद नहीं आई।
“जब धार्मिक किरदारों को विकृत रूप में दिखाया जाता है, तो जनता उसे स्वीकार नहीं करती,” – प्रेम सागर
‘मैं रामभक्त हूं, न कि क्रिटिक’
अपनी बात को स्पष्ट करते हुए प्रेम सागर ने कहा:
- “मैं कोई दर्शक या फिल्म समीक्षक नहीं हूं, मैं राम का भक्त हूं। अगर कोई राम का नाम प्रचारित कर रहा है, तो मुझे उससे कोई दिक्कत नहीं।”
- उन्होंने कहा कि राम के नाम का प्रचार किसी भी माध्यम से हो, वह स्वागत योग्य है।
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क्या ‘रामायण’ दोहराएगी इतिहास या सुधारेगी ‘आदिपुरुष’ की गलती?
रामानंद सागर की रामायण आज भी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। अब नितेश तिवारी की ‘रामायण’ पर लोगों की उम्मीदें और निगाहें टिकी हैं। प्रेम सागर की सलाह फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों—दोनों के लिए एक संतुलित चेतावनी है:
आस्था और कला के बीच संतुलन जरूरी है, क्योंकि आखिरकार फैसला जनता का ही होता है।