मूँछों में बसी शान
भगत सिंह का नाम लेते ही सीने में जोश की लहर उठती है। उनकी मूँछें कोई आम मूँछें नहीं थीं, वो तो एक देसी मर्दानगी का बयान थीं, जो हर हिंदुस्तानी के दिल में गर्व जगाती थीं। “मूँछें तनीं, जान लुटाई” – ये बात उनके जीवन का सार थी। उनका हर अंदाज़ ऐसा कि दोस्तों को हौसला दे और अंग्रेजों को खौफ। चाहे वो सभा में जोशीली तकरीर हो या जेल में बेफिक्र ठहाके, भगत की शान हर कदम पर चमकती थी। गोरे हुकूमत के सामने वो शेर की तरह डटे, और अपनी मस्ती से सबको ये दिखा दिया कि सच्चा वीर वही जो डर को ठेंगा दिखाए।

फाँसी से पहले की पूरी दास्तान
फाँसी का दिन करीब था, मगर भगत के दिल में न डर था, न मलाल। जेल में वो अपने साथियों के साथ देसी ठाठ से गप्पें लड़ाते थे। एक बार जेलर ने देखा कि भगत लेनिन की किताब पढ़ रहे हैं, वो भी तब जब फंदा बस कुछ घंटों दूर था। जेलर ने हैरानी से पूछा, “ऐसे वक्त में भी किताब?” भगत ने मूँछों पर हाथ फेरते हुए हँसकर कहा, “साहब, ये जिंदगी का आखिरी सबक है। फाँसी तो बस एक पड़ाव है, असली लड़ाई तो अभी बाकी है।” उनकी हँसी ने जेल की दीवारों को भी हिला दिया।
फिर एक शाम, सुखदेव और राजगुरु के साथ बैठे भगत पुरानी यादें ताज़ा कर रहे थे। लाहौर की गलियों में बम बनाने की बातें, अंग्रेजों को चकमा देने के किस्से – सब कुछ हँसी-मजाक में बयाँ हो रहा था। सुखदेव ने मज़ाक में कहा, “भगत, तेरी मूँछें देखकर तो फंदा भी शरमा जाएगा।” भगत ने ठहाका लगाया और बोले, “भाई, मूँछें तनेंगी, तो शान से फंदे को गले लगाएँगे।” फिर तीनों ने “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाया और “मेरा रंग दे बसंती चोला” गुनगुनाते हुए फाँसी की तैयारी की।
23 मार्च 1931 को, जब उन्हें फंदे की ओर ले जाया गया, भगत ने सिपाही से देसी अंदाज़ में कहा, “जल्दी करो भाई, हमें आज़ादी की राह पर देर हो रही है।” फंदे को देखकर वो मुस्कुराए और आखिरी बार जोर से नारा लगाया – “DOWN WITH IMPERIALISM!” उनकी मूँछें तनीं, और जान लुटाई – ये वो पल था जब भगत की शान अमर हो गई।
जान लुटाने का जुनून
“मूँछें तनीं, जान लुटाई” – भगत ने ये बात सिर्फ कही नहीं, जिया भी। उनकी जिंदगी को देखो, तो लगता है कि वो डर को जेब में रखकर घूमते थे। जेल में सलाखों के पीछे भी उनकी हँसी गूँजती थी, और फंदे को देखकर भी वो बेफिक्र रहे। शहीद दिवस पर उनकी ये मस्ती और जोश हमें याद दिलाता है कि सच्ची शान वही जो देश के लिए कुर्बान हो जाए।
अनदेखी शान की बातें
किताबों में भगत की बहादुरी तो खूब लिखी है, मगर उनकी अनदेखी शान की बातें कम ही सामने आती हैं। कभी लाहौर की सड़कों पर दोस्तों संग ठहाके लगाना, कभी अंग्रेजों की सभा में बम फेंककर उनकी नींद उड़ाना – ये था उनका असली देसी रंग। जेल में भी वो किताबें पढ़ते, क्रांति की बातें करते, और साथियों को जोश दिलाते। उनकी मूँछें सिर्फ चेहरे की शोभा नहीं थीं, बल्कि एक बगावत का प्रतीक थीं। “मूँछें तनीं” तो हिंदुस्तान की शान तनी, और “जान लुटाई” तो आज़ादी की राह बनी। शहीद दिवस पर उनकी ये अनदेखी शान हमें सिखाती है कि जिंदगी को मस्ती से जियो, और जरूरत पड़े तो देश के लिए लुटा दो।
तो भाई, इस शहीद दिवस पर भगत की मूँछों का ताव, दिल की धाक, और बेफिक्र जिंदादिली को याद करो। जोर से बोलो – “शान से जिए, शान से मरे!”
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