रिपोर्टर: प्रांशु क्षत्रिय
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क्या है पूरा मामला?
बिलासपुर में बीते एक माह के दौरान 8 से अधिक पत्रकारों पर फर्जी और संदिग्ध आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, जिसके खिलाफ प्रेस क्लब भारी नाराज़गी व्यक्त कर रहा है। पत्रकारों का आरोप है कि पुलिस बिना पुख्ता सबूत या गहराई से जांच का सहारा लिए, उन पर गलत तरीके से एफआईआर दर्ज कर रही है। वे आशंका जता रहे हैं कि कुछ लोग अपनी गलतियों को छुपाने के लिए पुलिस का सहारा लेकर पत्रकारों को फंसवा रहे हैं।
प्रेस क्लब का संयुक्त विरोध
- मंगलवार को प्रेस क्लब के अध्यक्ष इरशाद अली के नेतृत्व में शहर के तमाम पत्रकारों ने पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह से मुलाकात की और एकजुट होकर ज्ञापन सौंपा।
- पत्रकारों की प्रमुख मांगें थीं:
- एफआईआर दर्ज होने से पहले पूरी जांच और तथ्यों का मिलान हो।
- बिना ठोस जांच के किसी भी पत्रकार पर गिरफ्तारी न हो।
एसपी का जवाब और आश्वासन
पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह ने मीडिया को आश्वासन देते हुए कहा:
- “बिना जरूरत किसी को परेशान नहीं किया जाएगा।”
- जिन पत्रकारों पर एफआईआर हुई है, उन मामलों में पर्याप्त सबूत और तथ्य पुलिस के पास मौजूद हैं।
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि संज्ञेय अपराध की शिकायत मिलने पर पुलिस को कानूनी कार्रवाई करना अनिवार्य है।
- उन्होंने दोहराया, “किसी भी पत्रकार की गिरफ्तारी तब तक नहीं होगी जब तक पूरी जांच न हो जाए”, और यदि कोई निर्दोष पाया गया तो उसे डरने की ज़रूरत नहीं है।
पत्रकारों की चेतावनी
प्रेस क्लब का कहना है कि यदि भविष्य में बिना पर्याप्त जांच के यह कार्रवाई जारी रही, तो वे विरोध की गति और तीव्रता बढ़ा देंगे। उनका आग्रह है कि पत्रकारों की कार्य‑स्वतंत्रता और इज्जत का सम्मान किया जाए, और किसी को बिना सबूत के कानून की पकड़ में न लाया जाए।
जांच में क्या नया हो सकता है?
- स्पष्ट प्रोसेस: शिकायत मिलने पर पुलिस को तय तरीके से तथ्य-तलाशी करनी होगी।
- पारदर्शिता: एफआईआर दर्ज किए जाने का आधार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध किया जाये।
- उत्तरदायित्व: यदि पत्रकारों की गिरफ्तारी या एफआईआर कथित तौर पर निराधार पाई जाती है, तो अधिकारियों के खिलाफ जवाबदेही तय हो।