आइजोल: एक जहाज पर 90 साल का बुजुर्ग बैठा था और चीनी भाषा सीखने में लगा हुआ था. उसे देखकर एक युवक को बहुत हैरानी हुई. वह उत्सुकतावश बुजुर्ग के पास गया और पूछा कि इस उम्र में आप चीनी भाषा क्यों सीख रहे हैं? बुजुर्ग ने कहा, जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, आज हूं कल नहीं रहूंगा, सोचा नहीं रहा तो यह भाषा सीखने से चूक जाऊंगा. बुजुर्ग की बात सुनकर आपको हैरानी हो सकती है कि जब जिंदा ही नहीं रहेंगे, तो सीखने का क्या फायदा? लेकिन इस बात के पीछे छिपा दर्शन कहता है कि सीखने की ललक हो, तभी जिंदा रहने का फायदा होता है.
अगर सीखने की ललक हो तो उम्र महज एक संख्या रह जाती है. नॉर्थईस्ट टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मिजोरम के एक 78 वर्षीय बुजुर्ग ने यह साबित कर दिया कि उम्र वाकई में एक नंबर के अलावा कुछ नहीं है. अगर दिल में जज्बा हो तो किसी भी उम्र में कुछ नया काम किया जा सकता है. म्यांमार सीमा के करीब मिजोरम के चंपई जिले के न्यू ह्आइकॉन गांव स्थित हाई स्कूल में इस बुजुर्ग ने कक्षा 9वीं में अपना नामांकन कराया है.
लालरिंगथारा नाम के इस बुजुर्ग के जज्बे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चाहे चटकती धूप हो, भीषण गर्मी या फिर मूसलाधार बारिश, वह रोजाना 3 किमी चल कर स्कूल जाते हैं. 1945 में भारत-म्यामांर सीमा के पास खुआंगलेंग गांव में जन्में लालरिंगथारा की कुछ पारिवारिक मजबूरियों के चलते कक्षा 2 के बाद पढ़ाई छूट गई थी. महज 2 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया था. जब वह बड़े हुए तो इकलौता होने की वजह से उन्हें अपनी मां की मदद करनी पड़ती. इस दौरान काम की तलाश में वह कई जगह भटकते हुए आखिर में 1995 में न्यू ह्आइकॉन गांव में बस गए.
यहां वह स्थानीय प्रेस्बिटेरियन चर्च में गार्ड के रूप में काम करते हैं. गरीबी के चलते वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे, इस बात की कसक उन्हें हमेशा ही रही. उनकी दिली इच्छी है कि वह अंग्रेजी भाषा लिखना, पढ़ना और बोलना सीखें. लालरिंगथारा चाहते हैं कि वह अंग्रेजी में एप्लीकेशन लिख सकें और टीवी पर आ रहे अंग्रेजी समाचारों को समझ सकें. इसी चाह ने उन्हें स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया. अब वह अंग्रेजी भाषा लिखने, पढ़ने और बोलने की कोशिश में लगे हैं.
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